सोमवार, 3 सितंबर 2012


आँखों को,जो जो दिखता है
वो सारा क्या,सच होता है ?

सब कुछ,क्या होता बाहर ही
या कुछ होता है, भीतर भी

सृजना अंखुआती ,भीतर ही
कलियाँ मुस्काती ,भीतर ही

घाव कोई लगता,भीतर ही
दर्द उभरता है,भीतर ही

आँख भरा करती भीतर ही
सोच पका करती,भीतर ही

गीत कोई रचता,भीतर ही
राग कोई रुचता,भीतर ही

खवाब कोई पलता,भीतर ही
खवाब कोई मरता,भीतर ही

प्रेम उमगता है ,भीतर ही
मौन कोई पढता, भीतर ही

मरने से पहले, हर इंसा
पहले मरता है भीतर ही

सब कुछ होता है,भीतर ही

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