सोमवार, 27 मई 2013

उस दिन ....

उस दिन 
जब  , सूखने को होंगी नदियाँ 
उस दिन 
जब , ढहने को होंगे पहाड़ 
उस दिन 
जब  , जंगल होने को होंगे  उजाड़
उस दिन 
जब , धरती के बाँझ होने  की खबर 
आने को होगी  
मैं  फिर आऊंगा , ऐन् उस वक्त  
तुम्हारे पास , 
थोड़ी मिट्टी , थोडा पानी , थोड़ी धूप 
हथेली पर लिए 
बस एक बिरवा ,बचा लेना ... 
मांग कर  उसे ,तुमसे 
फिर से रोप दूंगा , 
मन के आँगन में .....
और थोड़ी दूर जाकर 
बैठ जायेगे 
हम .............तुम 
तुम देखना ....
उस दिन ..... 
फिर महक उठेगा आंगन 
और फ़ै.....ल...... जाएगा  
निस्सीम........ मन 
धरती के इस छोर से उस छोर तक 
उस दिन ......


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