सोमवार, 3 सितंबर 2012



मेरे मोहल्ले में एक रिक्शा वाला रहता है , नाम है ' जमाल ' , मेहनती और ईमानदार आठ बच्चों का बाप , दो अदद बीवियों का इकलौता शौहर उसके आठ बच्चों में उम्र का फासला उतना ही जितना कुदरत किसी होम सेपियन ( homo sapien ) को इजाज़त दे सकती है | जमाल का जिक्र मैं इसलिए कर रहा हूँ कि आज से ठीक तींन दिन पहले मेरे बेटे का जन्म दिन था और सुबह ऑफिस जाने से पहले घर में पत्नी से इसी बात पर विमर्श हो रहा था कि आज क्या किया जाए ? विशु का जन्म दिन कैसे सेलिब्रेट किया जाए या फिर कुछ किया भी जाए या नहीं , नतीजा सिफर ........कुछ भी तय नहीं हो पा रहा था | दफ्तर के लिए देर हो रही थी सो मैं निकल पड़ा | दफ्तर में भी कुछ देर तो इसी उधेड़बुन में रहा फिर अमूमन दफ्तर जैसे अपना समय आपके जीवन से अपनी जरूरत के मुताबिक़ काट कर निकाल ही लेता है तो उस रोज भी दफ्तर ने अपनी जरूरतें मेरी मसरूफ़ियत में तब्दील कर दीं और कब शाम हो गयी पता ही नहीं चला | दफ्तर से छूटते ही फिर अचानक सुबह की बात याद आ गयी लेकिन यह सोच कर घर फोन भी नहीं किया कि कही अगर बेटे ने उठा लिया तो ......एक अपराध बोध में जो सर झुका तो सीधा घर के गेट पर ही कालबेल बजाने के लिया उठा , मैंने ध्यान भी नहीं दिया कि इस बीच किसने गेट खोल दिया और मैं अपनी धुन में सीधा घर के मुख्य दरवाजे पर पहुचा | दरवाजा पहले से ही खुला हुआ था | अचानक नज़र पड़ी तो देखता क्या हूँ कि जमाल सपरिवार मेरे घर में आया हुआ है ,मेरे ही घर में उसने मेरा स्वागत कुछ इस तरह किया मानों मैं ही अपने घर में मेहमान हूँ | मैं बड़े अचरज में था कि ये क्या हो रहा है उससे ज्यादा यह सोच रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है ? जमाल की दोनों बीवियां और उसके आठो बच्चे , पूरा घर सजाने में इतने मसरूफ थे उन्हें यह ध्यान ही नहीं रहा कि मैं कब से अपने ही घर में हतप्रभ खड़ा हूँ और लगातार उन्हें कौतूहल से देखे जा रहा हूँ | जमाल की बीवी ठेठ देहाती अंदाज़ में सोहर की पारम्परिक धुन में कुछ साथ साथ गुनगुना भी रही थी | संगीत का रसिक ठहरा , सो ध्यान से सुनने लगा ...
तिरिया के जनमे कवन फल हे मोरे साहब ,    पुतवा जनम जब लेईहें तबै फल होईहैं |  पुतवा के जनमे कवन फल हे मोरे साहब ,     दुनिया अनंद जब होई तबै फल होईहैं || '' अब्बा ! मिठईया त अब ले नाहीं आइल .........जमाल का एक बेटा चीखा | अब तक माजरा मेरी समझ में कुछ कुछ आने लगा था | कमरे की एक दीवार के कोने से दुसरे कोने तक चाइनीज़ झालरों की लड़ी , दरवाज़े पर पारंपरिक हिन्दू विधान में सजी बंदनवार , अंदर झूमर टांगने वाली खाली जगह से ज्यामितीय आकार में सजायी गयी रंगीन गुब्बारों की लड़ियाँ , बीच में एक छोटी चौकी जिस पर लाल शनील बिछी हुई थी कुछ रखे जाने के इंतज़ार में  ......| पूरा घर भूने जा रहे मसालों की खुशबू से सराबोर , बच्चों की चिल्लपों , पत्नी के अलावा घर में दोतीन और महिलाओं का अतिरिक्त व्यस्तता में लगातार इधर से उधर आना जाना अच्छा भी लग रहा था पर कही कुछ बुरा भी |घर की तमाम महंगी चीज़ों की दुर्गति करते जमाल के बच्चों देख मेरा मध्यवर्गीय मन लगातार आहत हो रहा था , अपने ही घर में  बेबसी का ऐसा आलम कि खुदा खैर करे ....! | तब अचानक  पत्नी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी , वो मुझ से ही मुखातिब थीं .....कुछ बता कर तो दफ्तर गए नहीं थे कि आज शाम को क्या होना है , कैसे होना है  ? आज जब विशु स्कूल से लौटा तो बहुत उत्साहित था अपने जन्मदिन को लेकर ., आते ही पूछा , ''आज शाम के फंक्शन में किस किस को बुलाना है , मैं अभी जाता हूँ और कालोनी में और कुछ अपने दोस्तों को इनवाईट कर आता हूँ | हाँ , इस बार बड़ा वाला ही केक काटेंगे , पापा को फोन कर दो कि ऑफिस से लौटते वक्त वैसा ही बड़ा वाला केक मोडला बेकरी से लेते आयेंगे जैसा शुभम भैया ने काटा था | और तुमने भी फिर फोन क्यों नहीं किया , मैंने पूछा | झल्लाते हुए पत्नी बोली अरे ! सिर्फ केक ही तो नहीं कटना होता है कितनी तैयारी भी तो करनी पड़ती है , कुछ तय पहले से हो तब ना फोन करती ......मैंने पूछा , तब ये सब क्या हो रहा है ? ये लोग यहाँ क्या कर रहे हैं | पत्नी ने  तफसील से बताया कि आज अचानक करीब तीन बजे रिक्शे से जाने वाले सभी बच्चों को छोड़ने के बाद जमाल आया और कहने लगा मैडम जी ! आज बाबू का जन्मदिन है , शाम को आपके यहाँ बहुत काम होगा , बाहर से मेहमान आयेगे , गाना बजाना , खाना पीना सब होगा , आप बुरा न माने तो मैं अपने बीवी बच्चों को जब कहें तब भेज दूंगा , आपकी मदद हो जायेगी | मैंने उदास मन से उसे बताया कि नहीं आज कुछ नहीं होना है , सुबह ऑफिस जाने से पहले इस बात पर चर्चा तो हुई थी पर कुछ भी डिसाइड नहीं हुआ |हालांकि विशु जिद कर रहा है लेकिन इतनी जल्दी किया भी क्या जा सकता है | शाम को मंदिर चले जायेंगे , विशु को भगवान का दर्शन करा देंगे बस | तुम परेशान मत हो , अभी घर जाओ , कोई जरूरत होगी तो जरूर बताएँगे | इतना सुन कर जमाल चला गया और एक ही घंटे के बाद अचानक पूरे परिवार के साथ आ गया , कहने लगा - मैडम आप बुरा मत मानियेगा , आज बाबू का जन्मदिन है , ऐसे मुकद्दस मौके पर बाबू को दुखी मत कीजिये , आप बाबू को मंदिर दर्शन करा लाइए , लेकिन जनम दिन भी उसका जरूर मनाया जाएगा , पूरी खुशी से.........साल में एक ही तो दिन आता है और इस मुबारक मौके पर बाबू को दुखी करना गुनाह है गुनाह ! मेरे पास उसके इस तर्क का कोई जवाब न था , मैंने हामी भर दी , इधर स्वीकार में मेरे मुँह से ' हाँ ' निकला ही था कि उधार जमाल और उसका पूरा परिवार समारोह की तैयारी में लग गए | नतीजा , तुम देख ही रहे हो , करीब पचास साठ लोगों का नाश्ता खाना तैयार होने को है , पूरा घर भीतर बाहर सजा दिया गया है | और जमाल की दूसरी बीवी गाती बड़ा अच्छा है , कह रही थी आज तो वो कई सोहर गाने वाली है | खैर , मिठाइयां आई , केक काटा गया नाश्ता खाना हुआ और इसके बाद माहौल बच्चों की धमा चौकड़ी के बाद जब कुछ थिराया तो जमाल ढोलक ले कर बैठा उसकी एक बीवी मजीरा लेकर बैठी , सोहर शुरू हुआ ...एक के बाद दूसरा फिर तीसरा और फिर ..........जीवन में पहली बार ऐसा समारोह देखा , परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत फ्यूजन , माहौल ऐसा हुआ जैसा जीवन में पहले कभी घटित नहीं हुआ | धीरे धीरे रात गहराती गयी , ढोलक की थाप और सोहर के सुर मद्धम पड़ने लगे |धीरे धीरे सब विदा हुए | सब लोग एक एक कर चले गए , बच्चे भी बिस्तर पर लुढक गए पर मेरी आँखों में नींद कहाँ ? मैंने पत्नी से पूछा , ये अचानक जमाल और उसके पूरे परिवार को ऐसा क्या हो गया कि पिछले दस महीनों से , जब से हम इस मोहल्ले में आये हैं वह विशु को स्कूल पहुंचा रहा है पर मजाल है कि उसने घर की चौखट के भीतर कदम भी रखा हो , महीने का पैसा भी लेना होता था तो गेट पर ही खड़ा रहता था | आज उसका, ये बदला हुआ रुख कुछ समझ में नहीं आया .........| आज दिन में कुछ हुआ था क्या ? मैंने पूछा , पत्नी ने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया कहने लगीं कि आज जब तुम ऑफिस चले गए थे तब मैं भी इसी उधेड़बुन में थी कि आज शाम को विशु का जन्मदिन कैसे मनाया जाएगा | विशु करीब डेढ़ बजे स्कूल से लौटा  , रिक्शे की आवाज़ सुन कर मैं बाहर आयी | मेरी समझ में कुछ नहीं आया रहा था फिर भी  मैंने जमाल को रोका , भीतर गयी पर्स खोला , १०१ रु निकाले , बाहर जमाल को देते हुए मैंने कहा यह रमजान का मुकद्दस महीना चल रहा है , आप पांच वक्त के नमाज़ी है , इस माहे पाक इतनी मेहनत करते हुए भी रोज़े पर हैं | आज शाम आप इन्ही पैसों से मिठाइयां खरीद कर अपना और अपने परिवार में जो भी रोज़े से हैं उनका  रोज़ा खोलियेगा | एक इल्तेज़ा और कि,  इस माहे पाक में मेरे बेटे की बरक्कत और सलामती की दुआ कीजियेगा आप खुदा के नेक बंदे हैं उपरवाला आपकी दुआ जरूर क़ुबूल फरमाएगा इस बात का पूरा यकीन है मुझे | इसके बाद मैंने देखा वह इतना खुश हुआ कि खुशी से उसकी आँखे भर आई | उसने कहा तो कुछ नहीं , मुड़ा और आँखे पोंछते वापस हो लिया | उसके बाद जो कुछ भी है वह तुम्हारे सामने है |कैफी साब के अलफ़ाज़ हौले हौले हम दोनों पर तारी होते जा रहे थे .......'' आँखों में नमी हंसी लबों पर , क्या हाल है ,क्या दिखा रहे हो ....".........देर रात तक नींद का आसरा देखता रहा , जमाल की बीवी का सोहर अपनी शक्ल साफ़ करता जा रहा था ...''...........  दुनिया अनंद जब होई तबै फल होईहैं......

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