सोमवार, 3 सितंबर 2012


कभी ख़्वाब बन के नींद में आओ तो कोई बात बने
जो सो चुके हैं उनको जगाओ तो कोई बात बने

इन् खुश्क हवाओं में यूँ ही सब सूख रहा है
घटाओं झूम के छा जाओ तो कोई बात बने

मुमकिन है के दुश्वारियां राहों में बहोत हैं
कुछ खार तुम भी हटाओ तो कोई बात बने

शेरो सुखन से भी कभी कोई फर्क पड़ा है
जरा मैदान में आओ तो कोई बात बने

खामोशियों का क्या सिला यहाँ तुमको मिला है
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाओ तो कोई बात बने

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