सोमवार, 3 सितंबर 2012


कुछ अजीब सी महफिल है
है , जिस्म कहीं कहीं दिल है

बस शराफत के मारे हुए हैं
जनाजे में.. तभी कातिल है

यूँ हुआ वो..... चश्मेबददूर
होंठो के नीचे.. कोई तिल है

कुतरना हुआ आसाँ कितना
जहाँ चूहे हैं....... वहीं बिल है

दरिया मिटा लेता है वजूद
समंदर बड़ा.... तंग दिल है

कितना करीब हो सके कोई
आस्तीन में जिसका बिल है

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