गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013


क्या होती है  ?
किस जमीन पर 
हौले से पाँव धरती है 
कहाँ से ,
अक्स पाती है 
कहाँ पे
नक्श छोड़ जाती है ....

सद्यः जात का रुदनसंगीत 
ध्यान से
सुनो 
सरगम से बाहर
कोई सुर ,
 चुन सको तो 
चुनो ,
चुनो ...न  
,
बूढ़ी ,टिमटिमाती ,बुझती 
मरणासन्न ,
आँखों में 
जीवन का,सपना
पढ़ सको तो 
पढ़ो ,
पढों.... न 

ठन्डे होते जाते जिस्म मे
गर्म लहू की
कल्पना ....
कर सको तो
करो , 
करो.... न 

शब्दों कीं सलाई से 
इन्द्रधनुष के पार कोई ,
सतरंगी सपना
बुन सको तो 
बुनो ,
बुनो ....न 

धरती और अम्बर के पार 
नया  संसार   
रच सको तो
रचो ,
रचो ...न

आसमानी विस्तार के पार 
कल्पना के पर लिए
ऊंची उड़ान
भर सको तो
भरो,
भरो.... न

रचो ! हे महाकवि ! बिलकुल ,रचो 
नितांत मौलिक रचना 
कुछ अपना ,
सिर्फ अपना 
जो रच सको तो 
रचो ....
रचो ......न !

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