सोमवार, 3 सितंबर 2012


मेरे मोहल्ले में सुना कल रात कोई मर गया
कनखियों से झांकता उस घर को मैं दफ्तर गया

रास्ते में जो पड़ीं सारी इबादतगाहों पर
मैंने तरक्की पायी थी सो मैं झुकाता सर गया

था मिठाई का बड़ा डब्बा हमारे हाथ में
शाम जब गहराई उसके बाद ही मै घर गया

बाकायदा अफ़सोस करने जब मै जाने को हुआ
पुख्ता बहाना सोचने के बाद ही भीतर गया

क्यों मैं सोचूँ के मेरा भी हश्र होना है यही
पहली फुर्सत में ही तो सीधे मैं उनके घर गया

मेरी गाड़ी से जरा सी ही तो बस ठोकर लगी
बात कोई और होगी इतने से ही क्यों मर गया

नीली बत्ती थी लगी क्यों खामखा टकरा गया
औंधे रिक्शे से निकल बीमार काँधे पर गया

मोमबत्तियाँ जिसने बनाई अब शुक्रिया कैसे करूं
पर जेहन से मुँह छिपाना आसां कितना कर गया

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