सोमवार, 3 सितंबर 2012


न बोलिए न सुनिए बस देखते रहिये
अपने ही हाथों अपना गला रेतते रहिये

मुमकिन न हो ऐतबार अपनी ही बात पे  
बस एक झूठ बोलिये और फेंटते रहिये

किस किस को बताएं वजहेतर्केतालुकात
अपने गरेबां में मुँह छुपाइये झेंपते रहिये

झूठ के कोहराम में सच की सुनेगा कौन
भाड़ में सच्चाई फिर भी झोंकते रहिये

हर ओर तो लगी है आग मौका निकालये
कुछ रोटियां अपने लिए भी सेंकते रहिये

जिसने भी पढ़ रखीं हैं दो चार किताबें
ज़िन्दान में उम्र भर के लिए फेंकते रहिये

उनके क़ुतुब खानों में हैं जानवर बहोत
कुत्तों को छांट लीजिए और भौंकते रहिये

जब इन्साफ की देवी की आँखों पे है पट्टी
अन्धो के इन्साफ का हुनर देखते रहिये

सूखी हुई लकडियों में ये हौसला भी है
बुझने नहीं पायेगी आग देखते रहिये

कुछ जिंदगी का खौफ कुछ रद्देअमल का डर
बैठे बिठाए इन्कलाब का वजन आंकते रहिये

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