सोमवार, 3 सितंबर 2012


आज़ादी
उस विशाल किले का नाम है
जिस पर कुछ लोगों का
अवैध कब्ज़ा है
जिसके दरवाज़े पर
मजबूत पहरा है
और किला बंद है
भीतर से
किले के भीतर अँधेरा है
कोई राज़ बड़ा गहरा है
साल में कभी कभी
कोई नज़र आता है
मुनादी करते हुए
किले के बुर्ज से
वायदा बाज़ार का कोई खिलाड़ी
बोलियां लगात हुआ


आधे चुप हैं डर से
आधे संतुष्ट हैं
अपने टूटे फूटे घर से
कुछ हवेली के बाहर उग आयी
खर पतवार साफ़ करते हैं
कभी दीवारों पर उग आये
खून के धब्बे धोते हैं
और मन ही मन रोते हैं
इसमें उनके अपने
बच्चे भी होते है

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