सोमवार, 3 सितंबर 2012


कितने ठौर, दिखाए दुनिया
कितने तौर, सिखाए दुनिया  

मेरे जैसे,  जाने कितने
मुझको, और दिखाए दुनिया

एक नार  सरकार चलावे
एक पीसे लहसुन धनिया

सूखे खेती, मरे किसान्
सूदखोर सरकार कि बनिया

धरती छीनी,जंगल छीना
परगति से भरमाए दुनिया

बस दुःख थोडा छलक गया
भर आयीं जो फिर अखियाँ

किसको पीर सुनाऊ अपनी
लग रोऊँ किसकी छतिया

हड्डी चूसे सेठ महाजन
दूध मलाई चापे कुतिया

दुखियारी की भूख तो देखो
चाँद काट , खाये  रतिया

नेताओं के आश्वासन सी
साजन की झूठी बतिया

परजा तंत्र कि ठंडई में
कैसी भंग मिलाये दुनिया

सपने ,तितली भये,सखी
कब इस फूल ,कब उस पतिया

ठगिनी की करताल पे देखो
मनमोहन नाचे ता ता थैय्या

सूखे खेती, मरे किसान्
सूदखोर सरकार कि बनिया

बस चुनाव कि बात है साथी
मांगे , भीख चतुर बनिया

कैसे अपनी इज्जत ढांपे
फाटी सुखिया कि अंगिया

इन् आँखों कि बात न् पूछो
बारह मॉस लगे हथिया

लाल बगूला लील गयी
डाइन सी काली रतिया

दुःख का घन ऐसे बरसा
बह गयीं रही सही खुशियाँ


जुलुम जोर अब बंद करो
लाल हुई जाती अंखिया

लाल बगूला निकल रहा
फोड समुन्दर की छतिया

रोके टोके अब ना रुकेगी
अंधड भयी हवा,सखिया

मुट्ठी बाधे निकल पड़ी हैं
कितनी झांसी की रनियां

इसकी उसकी जात न् पूछो
सब डारे है , गलबहियां

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