सोमवार, 28 जनवरी 2013


तू भी आखिर दिल के करीब तो हुआ 
दोस्त हुआ न हुआ.... रकीब तो हुआ 

तुझसे क्यूँ उम्मीदें बेवजह थी मेरी 
तू हुआ न हुआ मेरा नसीब तो हुआ 

तेरा होना कभी......कभी नहीं होना
क्यूँ लगे है कुछ.... अजीब तो हुआ

सारे दुःख दर्द उसके नाम कर दिये 
खुदा हुआ न हुआ... गरीब तो हुआ 

कब्ल नेकियों के शुक्रिया मसीह का कर 
कुछ हुआ न किसी का.. सलीब तो हुआ 

हमसफर न हुआ खुशफहम ख्याल हुआ 
अजब तौर से वो वादाकश हबीब तो हुआ 

Monday, September 17, 2012
भीगी आँखें लिए   
जलती रहूंगी 
उजास भरती रहूंगी
तुम्हारे अंधेरों में.......


अस्मिता ....

by Pankaj Mishra on Sunday, October 28, 2012 at 10:30pm ·
ये इंसान विन्सान क्या होता है ....
ये तो आलरेडी हम है ही  
मेरी असल पहचान
मेरे नाम के आगे जाती है ' मिश्र ' तक 
और पूरा विश्व घूम कर आ टिकती है 
भारत के ''भोजपुरी भाषी क्षेत्र '' में 
जहाँ एक शहर है '' गोरखपुर '' 
वही एक '' मोहल्ला '' है जिसमे
कुल ग्यारह गलियाँ है 
और उतनी ही नालियां बजबजाती है 
सडांध नथूने छेद
दिमाग तक भी आ जाती है
सडांध रोकना था सो  
ढांक दिया है कंक्रीट के मोटे स्लैब से 
उन बजबजाती गंधाती नालियों को 
जो एक बड़े नाले में अंततः मिल जाती हैं 
उसी नाले से ठीक पहले
कार्नर का मकान है
एक शमी का वृक्ष भी है उसके उत्तर पूर्व में
चारों ओर सुरक्षा के लिहाज़ से
लोहे की भाले है
हाँ , दो डाबरमैन भी हमने पाले हैं
जी हाँ ....वो ही , मेरा घर है '' अस्मिता '' 
जी यही नाम है उसका 
हमे उस पे गर्व है........... 
ये इंसान विन्सान क्या होता है
ये तो आलरेडी हम है ही .....

Saturday, November 10, 2012
लटका है
बस , थोड़ी बेईमानी से  
कुछ इस तरह 
कि,
दिख जाए
आसानी से
इक
खटाक ! क् क् क् ....
काफी होती है
बजती है
कान में 
चटकती है
नसें 
सुन्न पड़े दिमाग में 
देर हो चुकी है 
खुद को
संभाल पाने में 
चारा पाने , खाने  
और 
हो जाने में ................


Monday, November 19, 2012
कभी इक 
आग का गोला थी धरा 
पर ,जीवन का नामोंनिशां
कहीं .......नहीं था 
बरसा घन
घोर.........
जल जल
चहुँ ओर 
नम हुई धरती 
अग्नि और जल के बीच ही 
पलता है जीवन कहीँ...
सब जल जल हो  
तब भी 
जलता है जीवन कहीं ... 
................................................

Monday, January 14, 2013
आम आदमी ......


कच्चा था 
कूचा गया 
पक गया 
चूसा गया
आम भी 
आदमी भी .........

Monday, January 14, 2013
मेरे आँखों की पुतलियों का रंग काला है 
मुझे नही मालूम था 
उसने बताया मुझे 

मैंने देखा 
उसकी पुतलियाँ भूरी है 
मैंने बताया
उसे भी नहीं मालूम था

अब मैं,
यह रूपक 
इस्तेमाल करने से डरता हूँ .......

Monday, January 14, 2013
इतना सच,
तो ,
जानती ही हूँ 
कि,
सुर्ख लोहे को
पकडूंगी 
तो,
जल जाउंगी
लेकिन 
यह सच भी 
जानती हूँ
कि ,
हथौड़ा
कब चलाना है  
ऐन उस वक्त,
जब लोहा
गरम होता है,
थोडा
नरम होता है.......

बुधवार, 23 जनवरी 2013


सारा पाप हमने किया है 
तुम्हे माई बाप हमने किया है

हम क्यों तडफडा रहे हैं
आस्तीन में सांप हमने किया है 

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव 
बचपन से जाप हमने किया है

हम कि इतने भोले भले थे 
इस कौम को खाप हमने किया है

इल्म कैरिअर की भेंट चढ़ गया
खुद को अंगूठाछाप हमने किया है 

मेरी आँखों में झाँक कर देखो
तेरे हिस्से का पाप हमने किया है