सोमवार, 3 सितंबर 2012


शुभकामनाएं !
भीतर कहीं गहरे धंस जाती हैं
इक फांस सी फंस जाती है
न जाने कितनी फाँसें
अटकी हैं ऐसी
जारी हैं लगातार , साल दर साल
जन्मदिन पर कभी
बरस गांठ पर विवाह की
इस कुचैली गठरी में
कितनी गांठें पड़ती जाती हैं
हर बरस एक एक कर
क्रमशः खुलती जाती है
भीतर का सारा सच
उगलती जाती है
दिल भी थेथर है
बिला वजह बल्लियों उछलता है
फांस तब थोडा और धंस जाती हैं
गांठे खुलना जब
बंद हो जायेंगी......... तब
शोक जरूर मनाना
अपने संदेशों का सोग जरूर मनाना
उस अपात्र जीवन पर
कामनाओं से भी जिसे
कोई हौसला न मिला
जैसा जीना था जीवन नहीं जिया
स्यापा करना उस जीवन का
शुभ न हो सका जो
व्यर्थ करता रहा कामनाएं
रहा खुद में मगन , आजीवन
नियन्त्रित करता रहा
अपने रक्त में मधु स्तर
नापता रहा बिला नागा , रक्तचाप
एक दिन दिल का दौरा पड़ ही गया
उस रोज वो अंततः मर ही गया

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