सोमवार, 3 सितंबर 2012


इन् जहर बुझी हवाओं का हम ,क्या गिला करें
खुशबुओं का ही सही चलो अब सिलसिला करें

याद कर पाना उन्हें जो भूल बैठे है हमें
ऐसा मुश्किल नहीं तो क्यूँ ना मिला करें

एक जो गुलशन में है और दूजा जो गुलदान में
जड़ से उखड के गुल कोई क्यूँकर खिला करें

आसानियाँ दुश्वारिया सब दोस्त है हमराह है
इससे ज्यादा जिंदगी पे हम और क्या कहें

हाशिए पे है पड़े जो,एक नज़र उन पे करो
वो कौन है इनका खुदा ये आलिम बयाँ करें

जिस्म सा मैं बच गया इक जान थी चली गयी
तकदीर का ये तब्सरा तो क्या खुदा करे

भूख से करवट बदलते, नींद आये भी तो कैसे
दिल से पहले बुझ गया चूल्हा,तो क्या करें

एक उम्र से जो हाशिए पे हैं पड़े हुए
खुद ही लपक के उनसे क्यों न मिला करें

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