मंगलवार, 10 जुलाई 2012


कुछ बीज है शब्दों के
रोप रहा हूँ
कविता के हल की मूठ थामे
साहित्य का खेत
जोत रहा हूँ
जीवनी शक्ति होगी
तो अंखुआ ही जायेंगे शब्द बीज
कुछ भूख मिटायेंगे
कुछ अगली फसल के लिए
बचा कर रख लिए जायेगे
इतना ही चाहिए
इनाम में ........
हल की मूठ थामे
सोच रहा हूँ
घाम में .............

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