मंगलवार, 10 जुलाई 2012


विजयदशमी का प्रतिपक्ष
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कौन मरा था त्रेता में ,
जो मैं, जश्न मनाऊ
कौन हो तुम ? जिस के स्वागत में ,
घी के दिए जलाऊ !!

चारण कवियों का सम्मोहन
धीरे धीरे छूट रहा
मिथकों का इतिहास से नाता
खंड खंड हो टूट रहा

इश्वर हो नश्वर हो,
मिथक हो इतिहास हो
राजा हो प्रजा हो,
आस्था हो विश्वास हो
वर्तमान के विवेक अनल में
युग सत्य को जलना होगा
नश्वर हो , नारायण हो,
तर्क बुद्धि की उबड़खाबड़
राह पे चलना होगा

इतिहास जेता के रथ की
पिटी लीक नहीं
तो और क्या है
रामायण और मानस सारे
अन्नदाताओं की भीख नहीं
तो और क्या है

वो असुर अधम था,
त्रैलोक्यजित था,
वो जो भी था
वो था नश्वर ही
तुम अवतारी ,पूज्यनीय हो ,
हो आखिर तो, इश्वर ही
वो कौन रावण था
जिसकी शक्ति अद्यतन उपस्थित है
तुम काहे के राम
तुम्हारी मर्यादा,अतुलनीय शक्ति
क्यों काल बाधित है

हो सकता है ,रण में,
जिसको मारा हो
कोई और रावण ,बेचारा हो
किसी मंदोदरी का पति,
किसी मेघनाद का पिता हो
या, हो किसी 'विभीषण' का भाई
जिसने कोई कुत्सित
राजनीतिक साज़िश हो रचायी 
और हुआ हो तुम्हारा
उससे पूर्ण सचेतन समझौता
इश्वर की पदवी मिली तुम्हे , संग में सीता
एक विरूप विभीषण ने बदले में पायी सत्ता
कलिकाल हो या हो त्रेता
सार्वकालिक ,सत्ता का सौदा
सार्वकालिक है शांति सेना ,
सार्वकालिक विभीषण
सार्वकालिक है छद्म शांति
और, सार्वकालिक है रण
कि विभीषण अब भी मरा नहीं
उससे खाली ये धरा नहीं, 

तो फिर ,
वो कौन मारा गया था ?
जिसका न कोई पहचान पत्र
बरामद हुआ, मौका ए वारदात से
और न ही दर्ज है कोई बयान
या फिर, अंगुलिओं के निशान
अत्याचारी, अपहर्ता का अमृत
किसके तीर ने सोखा
कहाँ है, उसका लेखाजोखा
किस प्रचार वाहन से ,उदघोषित हुआ
किस प्रचार तंत्र से ,किस प्रचार मंत्र से
युग युगांतर तक फैला
क्या तुम्हे याद है वो मंत्र ??
या तुम्हारी ही इजाद है ,
आधुनिक प्रंचार तंत्र
काल के किस पथ पर,
इतिहास के विजयरथ पर
हो सवार.......
किसी जेता कि हुंकार..
सुदूर ,सागर के उस पार
एक अत्याचारी ,अपहर्ता...मारा गया......
आदेश हुआ.....जश्न मनाओ !
मनायाया......
जेता घर आ रहा है...दीप जलाओ !
जलायायाया....
जलाते आ रहे हैं...
लेकिन, कब तक ?

हम,
इस इक्कीसवी सदी में
एक फर्जी एनकाउंटर के गवाह
कैसे हो सकते हैं ?
किसी भेदिये की
खुफिया सूचना पर हुए
संहार के इर्दगिर्द
एक सम्मोहक इंद्रजाल ,
कैसे बुन सकते हैं ? 
हम, कैसे कर सकते है, करताल
रामलीला मैदान मे एकत्र हो
साल दर साल ,लगातार
फर्जी एनकाउंटरो की त्रेता युगीन परंपरा
आज भी जारी है
विभीषण तब भी भारी था
विभीषण आज भी भारी है

अब जबकि,
रावण के अस्तित्व का प्रमाण
रोज ब रोज,मिल रहा है
हे राम ,क्षमा करना !
तुम्हारी तो पैदाइश का मुकाम भी
इतिहासविदों और न्यायाधीशों को
इतने वर्षों से ,
जाने क्यों ,नहीं मिल रहा है
तुम्हारा वजूद
एक मुकदमा है,
जो चल रहा है ...छल रहा है ......
एक रावण है जो बेचारा
आज भी तिल तिल  
जल रहा है....................................................पंकज 
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