सोमवार, 28 जनवरी 2013


Saturday, November 10, 2012
लटका है
बस , थोड़ी बेईमानी से  
कुछ इस तरह 
कि,
दिख जाए
आसानी से
इक
खटाक ! क् क् क् ....
काफी होती है
बजती है
कान में 
चटकती है
नसें 
सुन्न पड़े दिमाग में 
देर हो चुकी है 
खुद को
संभाल पाने में 
चारा पाने , खाने  
और 
हो जाने में ................

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें