सोमवार, 4 जून 2012


मुझसे मेरे शहर के दिनओरात पूछिये  
करता नहीं है इस पे कोई बात पूछिये 

कैसे लगूं गले बढ़ाऊं हाथ किस तरह 
मैं जानता हूँ फिर भी मेरी जात पूछिये 

बचपन की दोस्ती वहीं तक ही रही महदूद 
साहब से बचपने की कोई बात पूछिये 

क्यों मान के चलें के वो भी मान जायेंगे 
उनसे कोई नाज़ुक से सवालात पूछिये 

कोई भरम नहीं था मुझे क्यूं गिला करें 
वो दिन गए जो थे कभी हम साथ पूछिये 

हालांके अब भी हैं अदा में तेरे शोखियाँ 
मुश्किल में हैं हमारे भी हालात पूछिये 

सड़कों पे बह रहा है लहू बोलता भी है 
बातों में उसकी बात है क्या बात पूछिये 

तमगे सजे लिबास पे मुँह पे लगा है खून 
क्यों उनको मिल रहें है इनामात पूछिए 

उसने किसी उम्मीद में परचम उठा लिया
क्यों सो रहे हैं आपके जज़्बात पूछिये  

अपने गले की नाप की जिसने बनाई फांस 
कितने अंधेरों में हैं उसकी रात पूछिये  

जब के खुदा हमारा और तुम्हारा वही तो 
भरमा रहा है कब से उसकी जात पूछिये

उसके भरोसे में रहे सदियाँ गुजर गयी 
अब और कितने ढाएगा जुल्मात पूछिए 

हिंदू औ मुसलमान सिख ईसाई कब हुए  
किसने अलग किया हमें ये बात पूछिए 

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