बुधवार, 24 जुलाई 2013

१३ /७/१३

मेरे सलाम पे वो  नमस्कार बोले है
मिलें बैठे कभी तो यार यार बोले है

तहजीबओतमद्दुन की चाशनी में घोलकर
बड़े ख़ुलूस से वो दिल के गुबार बोले है

शबेविसाल मुझपे बड़ी खामोश गुज़री है
शबे फ़िराक में फिर इन्तेज़ार बोले है

ये उसकी अदा है या सितम की इन्तेहा
जुर्म वो करे औ मुझको खबरदार बोले है

ये जिसने बनाई है हदें हों उसको मुबारक
मुझसे मेरा यार ये बार बार बोले है


ज़रा राह में रुक के दम ले ले मुसाफिर
संग ए मील का मुसाफिर से प्यार बोले है

जरा राह में रुक के दम ले ले मुसाफिर
संगे राह का राही से , प्यार बोले है

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