रविवार, 27 मई 2012


जन गण मन अधिनायक .......तुम्हारी जय हो ....

तब ग्रेगे़रियन कैलेंडर
नहीं था और न ही था 
फरवरी जैसा कोई महीना 
न ही कोई सेंट वैलन्टाइन 
ऐसे आदिम युग में थी
आदिम मर्यादाएं
थे मर्यादा पुरुषोत्तम
वो रहा होगा
ऐसा ही कोई महीना
फरवरी या वसंत सा  
जब किसी सघन कानन में 
मर्यादा के किसी दुर्गम दुर्ग में 
किसी पुरुषोत्तम ने
गढे होंगे हथियार
था कोई शेषावतार 
किया होगा उसने 
उसका सफल परीक्षण
प्रारंभ हुआ तब ही से
प्रथम युद्ध 
प्रणय कातर
नश्वरों के विरुद्ध 
तू और कोई नहीं ,
वही है 
प्रथम अपराधिनी ,
मदन शर बिद्ध
क्यों भेदा था ?
मर्यादा का दुर्ग
निषिद्ध 
हे शूर्पणखा !
कर्ण- नासिका ,वियुक्त 
शूर्पणखा,
त्रेता से कलिकाल तक
शापित शूर्पणखा !
श्रीराम सेना के मर्यादा मंत्र से 
अद्यतन,
अभिमंत्रित शूर्पणखा.......

कहाँ,
रघुकुल तिलक
मर्यादा पुरूषोत्तम
कहाँ,
नीच,निर्लज्ज, दुस्साहसी
आसुरी अधम
शूर्पणखे'
तुम्हारी क्षय हो

जन गण मन अधिनायक 
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
तुम्हारी जय हो ..... 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें