रविवार, 27 मई 2012


जमीर .....


झाँक भी लो कभी
अपने गरेबां में 
ये ,वीरानगी सी क्यूँ है, छाई 
इस मकां में

अपने जमीर को, बारहा
कुरेदते रहो ...
अपने गले को,अपने ही हाथों 
रेतते रहो .......

न जगाये रख पाओगे 
तो ऊँघ ...सो जायेगा ...
आदमी के भीतर से, आदमी 
यूँ खो जायेगा ...

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