....................मैं तुम्हारा बाप हूँ....................
मैं, तुम्हारा बाप हूँ
मैं, तुम्हारा बाप हूँ
हाँ ,तो ....?
मैंने, तुम्हे पैदा किया है
जानता हूँ ,तो...?
मैंने, तुम्हे पाला पोसा,बड़ा किया है
सच है ,तो.....?
बुढ़ापे में,
मैं और तुम्हारी माँ
मैं और तुम्हारी माँ
कहाँ जायेंगे ,कैसे रहेंगे
क्या, इसी दिन के लिए,
तुम्हे, पैदा किया
पाला ...पोसा.....बड़ा किया
शायद...
मतलब ?
मतलब कि,
आप यही रहेंगे
कही नहीं जायेंगे
मैं भी यही रहूँगा ,
आपके साथ
आप भी यही रहेंगे ,
मेरे साथ .....
मैं ,
ये इसलिए नहीं कह रहा
कि,आपने
वो सब किया
वो सब किया
जो एक बाप को
करना चाहिए
करना चाहिए
कि, ये कोई क़र्ज़ है
जो उतरना चाहिए
कि ये कोई एहसान है
जिसके बोझ तले
मैं दबा हूँ,
जिससे
निकलना चाहिए
निकलना चाहिए
मुझे तो,
ये करना ही है
ये करना ही है
कि, ये मेरे लिए
इंसानियत कि शर्त है
कि,ये कोई सौदा नहीं है
और
न ही कोई उधारी......
सिर्फ, इंसानियत ....!
कंपकपाया,पिता का स्वर यन्त्र
सिर्फ, इंसानियत ....!
कंठ से फूटा हो जैसे मंत्र
सिर्फ, इंसानियत ....!
मैंने सर उठाया
पिता के नेत्रों से
झर रहा,
ज्यों मंत्र - निर्झर
झर झर झर
झर झर झर
काल कुंठित, प्रौढ़ प्रेत से, पिता लगे
संबंधों के निर्वात से झांकते, पिता लगे
निष्प्राण निर्वासन झेलता
बरस बीता ,दशक बीता
आज भी ,
उसी प्रेत बाधा से ग्रस्त
जीवन जी रहा
उसी प्रेत बाधा से ग्रस्त
जीवन जी रहा
मिला पाता आँख
न,अपने आप से
न् अपने ही सद्यः जात से
न् अपने ही सद्यः जात से
कदाचित, मिल ही गयीं कभी
देखता हूँ, ज्यों
काल कुंठित प्रौढ़ प्रेत का
वो मंत्र--निर्झर झर रहा है
और मेरे भीतर कोई बाप
धीरे धीरे मर रहा है ....
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