मुझसे मेरे शहर के दिनओरात पूछिये
करता नहीं है इस पे कोई बात पूछिये
कैसे लगूं गले बढ़ाऊं हाथ किस तरह
मैं जानता हूँ फिर भी मेरी जात पूछिये
बचपन की दोस्ती वहीं तक ही रही महदूद
साहब से बचपने की कोई बात पूछिये
क्यों मान के चलें के वो भी मान जायेंगे
उनसे कोई नाज़ुक से सवालात पूछिये
कोई भरम नहीं था मुझे क्यूं गिला करें
वो दिन गए जो थे कभी हम साथ पूछिये
हालांके अब भी हैं अदा में तेरे शोखियाँ
मुश्किल में हैं हमारे भी हालात पूछिये
सड़कों पे बह रहा है लहू बोलता भी है
बातों में उसकी बात है क्या बात पूछिये
तमगे सजे लिबास पे मुँह पे लगा है खून
क्यों उनको मिल रहें है इनामात पूछिए
उसने किसी उम्मीद में परचम उठा लिया
क्यों सो रहे हैं आपके जज़्बात पूछिये
अपने गले की नाप की जिसने बनाई फांस
कितने अंधेरों में हैं उसकी रात पूछिये
जब के खुदा हमारा और तुम्हारा वही तो
भरमा रहा है कब से उसकी जात पूछिये
उसके भरोसे में रहे सदियाँ गुजर गयी
अब और कितने ढाएगा जुल्मात पूछिए
हिंदू औ मुसलमान सिख ईसाई कब हुए
किसने अलग किया हमें ये बात पूछिए
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