जो होती पत्थरों में भी जुबान पूछते
शीशे के घरों में है कितनी जान पूछते
हवाएं थमीं हुयी है घुटा जा रहा है दम
क्या आँधियों का है ये इमकान पूछते
मोहल्ले के लफंगों से सहमा हुआ सा है
बिटिया है उसके घर में क्या जवान पूछते
ऊंची इमारतों से शहर है भरा हुआ
जम्हूरियत में और कितने है सुलतान पूछते
मुद्दत हुयी है मुझको मेरे यार से मिले
बाकी हैं अब भी क्या कोई एहसान पूछते
क्या सो गया खुदा भी अंधेरों के खौफ से
या हुयी नहीं पाबंदी से अज़ान पूछते
मेरी निगाहे शौक़ से कतरा रहे हैं वो
मेरी गली में उनका है मकान पूछते
उनके गुरूर से भी ऊंचे है उनके ख़्वाब
क्यों हैं जमीने इल्म पे लामकान पूछते
सड़कों पे जम गया जो लहू बोलता भी है
बाकी जरूर होगी उसमे जान पूछते
कल तस्करी के जुर्म में पकड़ा गया हूँ मैं
लाये हो किस जहान से ईमान पूछते
तेरे शहर में अब मुझे कैसे मिलेगा घर
न हिन्दू हूँ और न मैं मुसलमान पूछते
खारिज हुआ मेरा हल्फिया बयान इस तरह
हाथ दिल पे रख के क्यों दिया बयान पूछते
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