प्राण पिक कुछ बोल रे................. (1984 यानी १२वीं पास किया ही था तब मैंने ....... .....)
by Pankaj Mishra on Wednesday, April 18, 2012 at 11:35pm ·
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क्यों मौन है मुख खोल रे
प्राण पिक कुछ बोल रे.....
अध् खुली पलकें तुम्हारी
अध् खिलीं अलकें तुम्हारी
कह रही कुछ गुनगुन गुन
प्राण पिक तू ध्यान से सुन
क्या मिला सन्देस रे..........
क्यों मौन है मुख खोल रे
प्राण पिक कुछ बोल रे....
तू रूपनगर की सीमान्त
मैं बटोही व्यथित क्लांत
घन श्याम है विश्राम कर लूं
उर व्यथित आराम कर लूं
जड़ अधर कुछ डोल रे........
क्यों मौन है मुख खोल रे
प्राण पिक कुछ बोल रे.....
मैं मन मयूर बन आया हूँ
तेरे इस जीवन कानन में
मैं कब का प्यासा बैठा हूँ
दो बूँद की खातिर सावन में
तू अपनी अलकें खोल रे.....
क्यों मौन है मुख खोल रे
प्राण पिक कुछ बोल रे......
तुम मृगतृष्णा सी आयी हो
मै मृग सा कुछ भरमाया हूँ
तुम कस्तूरी सी छाई हो
मैं गंधी बन पछताया हूँ
उर जीत लिया बिन मोल रे....
क्यों मौन है मुख खोल रे
प्राण पिक कुछ बोल रे.....
तुम मेरी प्रियतर कविता हो
नव आयामों की अन्विता हो
मैं खुद से लड़ लड़ हार गया
तुम चिरविजयिनी,अपराजिता हो
ध्वनि भावों में घोल रे........
क्यों मौन है मुख खोल रे
प्राण पिक कुछ बोल रे......
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